शनिवार, 9 मार्च 2013

बस यूँ ही १०



कितने बदनसीब है ये दिन,
जब हम खुद से भी सच नहीं कह पाते है
इससे तो भले रातों के वो काल्पनिक सपने,
जिसमें मैं मैं ही रहता हूँ, पूर्णत: मैं

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