सोमवार, 25 मार्च 2013

वो भारत की बेटी

वो जा चुकी है! इस दुनिया को छोड़ कर कहीं दूर.... या यूँ कहिए कि खदेड़ी जा चुकी है|
किसी ने अबला कहा ,किसी ने वीरांगना , किसी ने शिकार, किसी ने साहसी ...सब कुछ ना कुछ उसे संज्ञा देते गए और खुद को माफ कर दिया |
गलती शायद उनकी नहीं है , उनके पास तो समय ही नहीं है मानवता के लिए :
"कोई मुझसे ना पूछे कि तू है क्यों तनहा
जो भीड़ में खोये हैं , वो मेरा एकांत क्या समझेंगे"
हद तो तब हो गयी जब बाहर वालों ने भी पुरस्कार दे दे तिरस्कार करना चालु कर दिया| हमारे उत्साह और जीवंत सी दिखती समाज के प्रति चिंता कहीं  पहले मोमबत्तियों के साथ जल कर पिघल चुकी है, अब तो ऐसे ठंडी हो गयी है कि तूफान तो दूर, उफान भी आने से रहा |
न्याय क्या है: भारत एक जनतंत्र है इसमें सबको बोलने की आजादी है|  क्या मौत के शिकार के खुनी को मौत देनान्याय है | कुछ लोग मानते हैं , कुछ बोलते है इससे तो हम भी खुनी बन जाएँगे और दोनों में फर्क क्या राह जायेगा | खैर सबके अपने तर्क, अपने विचार | एक प्रश्न रह रह के फिर भी उठता है अगर नही दिया और उसने फिर से किसी का खून किया तो | हम किसके गुनहगार बनाना पसंद करेंगे  | मानवधिकार वालों को कौन समझाए , आधी ज्ञान पढ़ लिया की माफ करना बढ़ो के गुण है , फिर बिना डिग्री लिए चल पड़े प्रक्टिस करने | खैर इनसे कौन निपटे | न्याय का निर्णय न्याय पालिका पर छोड़ थोडा आगे बढते हैं|
लडकपन क्या है: ये तो बच्चा भी समझता है , नहीं सरकार हमारे यहाँ नहीं समझती , देश के सेना अध्यक्ष के आर्मी हॉस्पिटल में पैदा होने पर आर्मी हॉस्पिटल का जन्म प्रमाण पत्र गलत , और एक बलात्कारी के स्कूल का फर्जी प्रमाण पत्र सही | सब कुछ सुविधा अनुसार | जो किसी का बलात्कार कर सकता है| चलिए रहने देते हैं | जो हुआ वह इतना  ज्यादा वीभत्स और जघन्य था कि उसके सामने बलात्कार भी शराफत लगता है| लेकिन उसे करने वाला तो बच्चा है | खैर इस देश में ४२ साल में युवा नेता होते हैं तो १७ साल में तो बच्चे गर्भ से निकलते होंगे , हमारी क्या औकात प्रश्न पूछने की ?
बात सिर्फ १ किस्से की नहीं है बात है इंसानियत की जो बदलने का नाम हई नहीं ले रही , कही बेहद गहरे से भवन निर्माण के बने गड्ढे में २० -२५ फीट नीचे गिरे २ साल के शैशव की तरह छटपटाती इंसानियत, मानो सदियों पहले दम तोड़ चुकी हो | सवाल है उस मरी इंसानियत में बची मानसिकता का, जो अलग अलग हो कही बिखरी हुई है| भ्रूण हत्या हो या बधू हत्या| इनके जाने कितने उदाहरण समाज में बिना ढूंढे मिलते हैं| अगर साधन कम पढ़ गए तो जन्मजात कन्या के मुंह में लड्डू ठूंस दिया या फिर ऐसे ही मिट्टी के नीचे दबा दिया, दम घुटने तक| मौत तो पराकाष्ठा है , हर कोई उस तक शायद न जा पाए लेकिन उन अपराधों की वीभत्सता शायद ही कुछ कम हो|
वक्त हो चला है कि एक नयी सोच हम और आप भी विकसित करें नहीं तो कही छूट ना जाये पीछे , घर और समाज की नयी पीढ़ी , जिन्हें नैतिकता का पाठ पढाने की जिम्मेदारी हमारी ही है| आइए संकल्प करें कि बदलूँगा मैं| आखिर सारे मैं मिल कर ही तो समाज बनाते हैं|
चलो आह्वान करते हैं राजा राम मोहन राय का | यह धर्म निरपेक्ष देश है और एक तबका इस्लाम का , पुन्र जन्म को नहीं मानता| चलो खुदा से कहते हैं उस पीर के रास्ते पर हम भी चलेंगे|

Photo Courtesy: The Hindu
(This article was also written on http://www.thefrustratedindian.com/blogs/entry/50-Wo+bharat+kee+beti.html )

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