मंगलवार, 24 जुलाई 2012

लंदन २०१२

जा रहे हो तुम करोड़ों आशाओ के साथ||
लौट के आना सुवर्ण श्रृंगार से साथ |
सोचना तुम ये तो कर ही सकते हो||
ऊपर उठ सकते हो आसमान छु सकते हो| 
बोझ ना समझना ये अभिलाशाएं है तुम्हारी|
कुंदन तुम खुद हो तो पूर्ण होंगी स्वर्णिम आकांक्षाएँ तुम्हारी||

26/11 की यादें

आओ आज फिर भूल जाये हम सब कुछ|
गर न भूलने से दर्द कम हो जाये किसी का, तो याद हम क्यों करे| 
दर्द देने वाले को हम खुश करते, और कोशते हम खुद को रहे|
धीरे धीरे हमें आदत सी हो गयी गम सहने कि, बुजदिल बने हम रहे| 
साथी मरे और मरे जाने कितने अजनबी , हम शर्म क्यों करे |
वो अजनबी जो अपने थे अब वो नहीं हैं, हम गम क्यों करे |
आओ आज फिर भूल जाये हम सब कुछ|