Jane Bhi Do Yaaron
जिंदगी कुछ यूँ रही कि मौत बेहतर हो सके, उस मौत के इस इंतज़ार में जीना ही भूल बैठे
शनिवार, 9 मार्च 2013
बस यूँ ही १०
कितने बदनसीब है ये दिन,
जब हम खुद से भी सच नहीं कह पाते है
इससे तो भले रातों के वो काल्पनिक सपने,
जिसमें मैं मैं ही रहता हूँ, पूर्णत: मैं
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