Jane Bhi Do Yaaron
जिंदगी कुछ यूँ रही कि मौत बेहतर हो सके, उस मौत के इस इंतज़ार में जीना ही भूल बैठे
बुधवार, 13 मार्च 2013
बस यूँ ही १३
की वो बेवफा थे ये मालूम था हमें,
फिर भी हम वफ़ा का तमाशा करते गए
हर मोड पे खाए घाव उनसे हमने,
फिर भी उनसे ‘अमन की आशा’ करते गए
कोई टिप्पणी नहीं:
एक टिप्पणी भेजें
नई पोस्ट
पुरानी पोस्ट
मुख्यपृष्ठ
सदस्यता लें
टिप्पणियाँ भेजें (Atom)
कोई टिप्पणी नहीं:
एक टिप्पणी भेजें