शुक्रवार, 26 अक्तूबर 2012

बकरीद

आज कल त्यौहार चल रहें हैं मैं लिखता हूँ , लिखते लिखते उदास हो जाता हूँ , लोगो कों भी कर देता हूँ| लोग पूछते हैं क्यों भाई ऐसे नकारत्मक क्यों लिखते हो , प्रतीकत्मक लिखने पर भी लोगो नकारात्मक लगता है| मुझे साहिर की ये पंक्तियाँ याद आ जाती हैं :-

"हम गमजदा हैं लाएं कहां से खुशी गीत
देंगे वही जो पाएंगे इस जिंदगी से हम"

कभी कभी लिखना चाहिए, वो जो अच्छा लगे , मीठा लगे , सच लगे | सच तों सब लिख सकते हैं
, सच लगने वाली बात लिखना चाहिए, तभी भरोसा होता है अपनी काबिलियत पर |

खैर मौसम तो है त्योहारों का , पूजा खत्म हुई है | अधिक मास के कारण बकरीद दुर्गा पूजा के पास आ गया, उस दिन से ३ दिन और २ रातों तक चलेगा | ३ साल ऐसे ही चलेगा|

सच्चाई और अच्छाई की बुराई पर जीत मना चुके | रावण जला चुके | अब पर्व आया है त्याग का , बलिदान का , कुर्बानी का , अपने सबसे अजीज चीज की | लोग बकरा काट खा जाये हैं , कुर्बानी ये नहीं हैं कि बकरा काटना , कुर्बानी यह है कि ७५ पतिशत बकरा दूसरों मे बाटना , जो मांसाहारी हैं वो समझ सकते हैं , कितना मुश्किल काम होता होगा |

खैर बकरे तों पैदा ही होते हैं कटने के लिए , उसकी अम्मा कब तक खैर मनाएगी|

ईद उल जुहा | जाने कितनी बार मेजर जनरल हरिशंकर शर्मा ने मनाई होगी अपनी पत्नी हुश्ना के साथ | भगवान की आज्ञा के लिए अपने सबसे प्यारी चीज कि कुर्बानी , खैर इंसान कों चीज कहना गलत होगा , कानून भी इजाजत नहीं देता बलि की, तो छोड़ दीजिए| वैसे कांग्रेस कों ईद मनानी पड़े तों कसाब की क़ुरबानी दे सकती है , अभी वीरभद्र के दी हैं | कुर्बानी गडकरी की भी देंगे आखिर सत्ता मे जो आना है भाजप को |

खैर अगर कुर्बानी देनी ही है , तो एक ऐसी प्यारी आदत की दीजिए जिसकी जरुरत ना हो , आइये प्रण ले इस ईद आलस्य का परित्याग करे , कुर्बानी दे, हमेशा के लिए|

1 टिप्पणी:

Yashwant Kumar ने कहा…

waah bhai! mazaa aa gaya....