मंगलवार, 23 अक्तूबर 2012

त्यौहार

दशहरा, विजयादशमी, नवरात्री: कई नाम है इस पर्व का | कोई कहानी कहता रावन की , कहानी महिषासुर की| रस नौ , माता के नौ रूप| उत्तर में रामलीला और रावन दहन हो रहा है , पश्चिम मे नवरात्री के नृत्य हो रहे है तो पूर्व मे दुर्गा माता के आराधना , दुर्गा माता के साथ माता सरस्वती , माता लक्ष्मी, गणेश, कार्तिकेय की भी |

भारत विविधताओ में एकता का देश है , आखिर जब राम लड़ रहे थे रावण से , तब कोई नृत्य कैसे कर सकता है हर्ष और उल्लास के साथ | विष्णु वर्सन 8 (कृष्ण) डाउनलोड करने के बाद भक्ति मे पुराने आउटडेटेड सॉफ्टवेर विष्णु वर्सन 7 (राम) का क्या जरुरत| जो करना है करने दो| खैर आज कल कुछ लोग अपने आप को पाश्चात्य संस्कृति(बिहार के लिए गुजरात भी पश्चिम ही है ) से ग्रसित हो खुद को डांडिया डांसर समझ रहे हैं|

त्यौहार| इसको मनाने का अधिकार सिर्फ पैसे होने वाले को ही होना चाहिए| नए वस्त्र सबके लिए, चाहिए या न चाहिए , शायद आपकी अलमारी के लिए ही सही | बच्चे थे; खुश हो जाते थे , बाकि जैसे हम भी नया वस्त्र लेंगे , मेले मे जायंगे | पैसे तो माता पिता देंगे ही|

तभी मनमोहन सिंह नहीं हुआ करते थे , तो हमें यही लगता था की पैसे पेड़ पर उगते हैं| तभी बता देते तों इतनी तकलीफ न होती | शायद इन्होने बोला भी होगा , तभी प्रधानमंत्री नहीं थे , एकोनोमिक्स टाइम्स के किसी पन्ने पे छापा भी होगा , किसी ने न पढ़ा न बताया| कुछ लोग की किस्मत ऐसे ही होती है , कुछ भी कर ले , कुछ भी बन जाये , कोई भाव नहीं देता |

पैसे के तकलीफ नही पता, मध्यम वर्ग का बजट खराब हो जाता था , सबके लिए नए कपडे , स्त्रियों को घर का मालिक बनाया ही इसलिए जाता होगा ताकि अगर कटौती करनी है तो अपने नए कपड़े न ले , मालिक त्याग के लिए , बलिदान के लिए , शोषित होने के लिए|

मालूम पड़ जाएँ तो कभी नए कपड़े न लेते, जरुरत ही क्या है| क्या भगवान राम ने नए कपड़े पहने थे, रावण को मारने के लिए , या माता ने पहनी थी नयी साडी, राक्षसों का अंत करने के लिए |

मध्यम वर्ग तो फिर भी ठीक है, ले दे के , कर्जो मे डूब के त्यौहारो के सजा यातना झेल जाता है, बोलता है | शायद कुम्भ मे इतनी इतनी भीड़ इसलिए होती है , क्योंकि उस वर्ष त्यौहार १२ के बजाये १३ महीनों पर आता है , लोग खुश होते हैं दुआए देते हैं , चलो थोडा आराम मिला एक महीने का|

गरीबों की हालत क्या कहने| आता ही है त्यौहार: यह अहसास दिलाने की तुम हो या नहीं , फर्क नहीं पड़ता किसी को भी नहीं| मांग लो, नहीं मिलेगा , परबी के नाम के कुछ कपड़े पुराने मिल गए तों मना लो त्यौहार खुश हो के| बच्चे हो तो भी समझो, फटा पुराना ही सही, मिला तो बदन ढांकने कों , आखिर ये शायद आखिरी वर्ष हो तुमारा , इस ठण्ड टिक पाए तभी तो आखिरी नहीं होगा न|

गरीब का बचपन तो गर्भ मे ही बीत जाता है, जन्म लेते ही प्रौढ़ हो जाते है, और मौत होती है बार बार रोजाना , जिस दिन प्राण निकलते है उस दिन तक |

जो कुछ मिल गया खुश हो जाओ अपनी किस्मत पर| गम न करो जिन्दा रहने दिया गया, खैर मनाओ | लेकिन बचपन ही तों है एक वो भी छीन लें | मर मर के माँ बाप बच्चो के खुशी खरीदतें हैं, अपना खून बेच कर|

खैर सच्चाई ये है कि भगवान के यहाँ सब बराबर है , लेकिन जाने वालो कों दूसरों को आना अच्छा नहीं लगता , एक्सक्लूसिव सर्विस की आदत पड़ गयी है हमें , भगवान से भी चाहिए | इनका बस चले तो रावण के अंदर एक पारदर्शी आग सुरक्षित कमरा बना के रावण दहन देखे , खास नागरिक जो हैं आम देश के|

खैर मुझ जैसे दीवानों के मत सुनिए, पर्व मनाइए , हो सके तो दबे वर्ग की भी मदत कीजिये|

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