सोमवार, 22 अप्रैल 2013

नारी तेरी और होगी कितनी दुर्दशा

नारी तेरी और होगी कितनी दुर्दशा
तु ही तो है मंथरा और तु ही सूर्पनखा

फिर तु ही देवी सीता क्यों कहलाती
अग्नि परीक्षा भी तुझसे ही क्यों मांगी जाती

तु ही कही जाती है खानदान की आन
फिर अपनी सभा में ही होता द्रौपदी क्यों तेरा अपमान

यूँ तो अबला कह दबाई जाती है
क्यों फिर तुझे शक्ति और काली की पदवी दी जाती है

भ्रूण में मारा , जन्म पर गला घोंटा
और तार तार कर लुटा तेरा  बचपन

जवानी में नोंचा और जिन्दा जलाया
और बुढ़ापे में विधवा कह घर से भी भगाया

नारी तेरी यही कहानी है
तु परायी ही पैदा हुई, परायी ही तेरी जिंदगानी है

नारी तु कुलक्षणी तु ही है अभागन
तु ही चंडालन तु ही है डायन

अब भी तु ना समझी और सोचती कि ये दुनिया सुधरेगी
नारी तेरी और होगी कितनी दुर्दशा

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