शुक्रवार, 5 अप्रैल 2013

खेल का तमाशा



बात शुरू होती है ८० के दशक के अंतिम वर्षों से| घर में नया नया टी वी आया था, श्वेत-श्याम| मुझे भी नयी नयी समझ आयी थी, थोड़ी थोड़ी ही सही , कुछ ढाई-तीन साल का शैशव ही था तब तक | घर में सबसे छोटा था मैं , मुझसे भी छोटा और दुलारा हो गया था टी वी| तब तक बड़े भाई बहन टी वी देखने दूसरों के घर जाते थे , या यूँ कहें इस छोटे से कस्बे जैसे शहर के इस मोहल्ले के सारे लोग उनके घर ही जाते थे, जहाँ उनके घर के बच्चे इठलाते रहते थे| हमारे घर मोहल्ले का दूसरा टी वी आया था , इसमें शटर (shutter) नहीं था यानी कोई चाह के भी टी वी बंद नहीं कर सकता , ऐसा लगता था | टी वी चलता गया, रामायण, बुनियाद, फौजी जैसे सीरियल जो उस समय सिर्फ चलचित्र का आभास कराते थे , जो मेरी समझ से परे थे|

दूरदर्शन का एक चैनल जिसपर कभी कभी क्रिकेट मैच भी आता था | मैदान में कुछ लोग सफ़ेद पोशाक पहने आगे पीछे दौड रहे होते थे उनमे से दो के हाथ में सपाट डंडे, और उन्होंने रक्षा के लिए सुरक्षा वस्त्र भी पहने होते थे, समझ में नहीं आता था जिसके हाथ में हथियार वही रक्षा की मांग करता है, बड़े हो समझ में आया कि ऐसा भी होता है |

कभी कभी १ दिन में खत्म कभी ५ दिन तक चलता रहे | पिता जी बताते रहे की क्रिकेट २ प्रकार का होता है, तभी एक छोटा सा बच्चा जो यूँ तो उम्र में मुझसे काफी बड़ा था लेकिन टीम सबसे छोटा होने की वजह से मुझे उससे अपनापन सा हो गया था, उसका नाम था सचिन रमेश तेंदुलकर, लोग कह रहे थे की ये गावस्कर से भी बड़ा खिलाडी बनेगा | खैर धीरे धीरे हम दोनों बड़े होते गए, क्रिकेट खेलना उसकी और देखना मेरी जिंदगी का एक अभिन्य अंग बन चुका था, बहुत सारे लोग मेरे जैसे थे, कुछ ऐसे भी थे जिन्हें क्रिकेट पसंद भी नहीं था, लेकिन कम ही थे जिनके लिए क्रिकेट के बारे में बात करना पागलपन की हद तक का जुनून था |

टीवी बड़ा हो चुका था, रंगीन भी , दीवानगी भी कई गुना बढ़ चुकी थी , सचिन के साथ रमण, अनिल , अजहर , कपिल , मनोज , अजय , किरण, श्रीनाथ , के साथ बाकी टीमों के खिलाडियों के नाम भी याद हो चले थे, डेविड बून , इमरान खान , वसीम अकरम , फ्लोवेर बंधू , केपलर वेसल्स , लारा, हूपर के नाम पड़ोसियों जैसे अपने लगते थे| कई लोग पिता जी को बोलते, बाबु साहब क्या  लड़का बिगाड़ रहे हैं, क्रिकेट मत दिखने दीजिए ये सब पढ़ने लिखने के दिन हैं|  


अभी भी कपिल देव की वो वर्ल्ड कप के साथ पुरानी 25 जून 1983 की तस्वीर दिल और दिमाग का खूबसूरत हिस्सा थी|

दीवानगी सिर्फ इंसानों तक सीमित नहीं थी, क्रिकेट के नियम , एक ओवर में कितने बाउंसर फेंक सकते हैं ,  बैट के लम्बाई चौड़ाई की सीमा, बौल के आकार, खिलाड़ियों के बैट के वजन , क्षेत्ररक्षण के जगहों के नाम, डकवथ लेविस नियम और पता नहीं क्या क्या , अपने आप में शोध के विषय थें|               

बहुत लोग क्रिकेट नहीं देखते थे, या यूँ कहें उन्हें समझता नहीं था| अजी कहिये की मंद बुद्धि होते थे, इतने पेचीदा नियमों को समझने की औकात नहीं थी उनकी|

कुछ लोग 5-5 ओवर वाले 6 ए साइड क्रिकेट ले आए, इसकी गति तेज जरुर थे रन भी बनते थे लेकिन एक सच्चे क्रिकेट प्रेमी के रोमांच को संतोष नहीं दे पाता था |

आखिर औसत लोग 1-2 घंटे में खेल खत्म करवा के घर जाना चाहते थे , अब इतनी निष्ठा तो एक सच्चे खेल प्रेमी में ही हो सकती है की 5 दिन लगे रहे | हम उन औसत दर्जो वालों को हीन भावना से देखते रहे |

तब तक किसी औसत दर्जे वाले ने टी20 का प्रचालन कर दिया , शुरुआत में तो भारत वर्ष ने इसका खूब विरोध किया लेकिन फिर इधर भी आई पी एल का बुखार लग गया |

जाहिर है हम जैसे क्रिकेट प्रेमियों को बहुत ठेस पहुची  थी , नौटंकी को भी कही खेल कहा गया है क्या ?

कहा जाने लगा कि छोटे खिलाडियों को फायेदा होगा, लेकिन खिलाडियों की नीलामी होने लगी, खिलाडियों से ज्यादा पैसे मालिकों को मिलने लगे| जी नहीं मुझे कोई समस्या नहीं थी| हर कामयाब चीज की गुणवत्ता गिरा व्यापारीकरण और बाज़ारीकरण होना तो लाजिमी है| क्रिकेट के साथ कुछ ऐसा ही हो रहा था|

एक बाज़ार बन चुका था, जिन्हें कुछ नहीं समझ आता वो भी क्षेत्रीयकरण की भाषा समझने लगे, किसी को शाहरुख खान, किसी को प्रीती जिंटा, किसी को शिल्पा शेट्टी, तो कही भाड़े पे आए अक्षय , कटरीना , दीपिका| बड़े बड़े व्यापारियों के बेटे बेटी भी सेलेब्रिटी बनने लगे थे| चीअर गर्ल लोगों के वार्तालापों का विषय बनने लगी थीं, खेल कहीं पीछे छुट चुका था| लोगों की बातचीत से समझ पाता था कि वो अपना ज्ञान दिखा रहे थे वो खिलाडियों के वस्त्र से लेकर लिपस्टिक के रंग तक था| लोग जो कभी हमारी बात सुन हीन भावना से ग्रसित रहते थे एकाएक नये नये ज्ञान ले के चल पड़े थे |

आई पी एल देखने का मन नहीं करता था, कईयों ने पूछा तुम तो 5 दिन का नीरस मैच भी नहीं छोड़ते थे फिर इतना रोचक आई पी एल क्यों नहीं देख रहे , क्रिकेट से दिल भर गया क्या | मैंने कहा क्रिकेट से तो प्यार अब भी बेइंतहां है लेकिन अभी क्रिकेट कहां हो रहा है?

यहाँ तो तमाशा हो रहा है! 

देखते रहिये| खैर ये मेरी राय है आप देखिये: क्रिकेट हो या तमाशा मनोरंजन तो होगा ही|

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Image courtesy: www.cartoonistsatish.blogspot.in

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