शुक्रवार, 12 अप्रैल 2013

बस यूँ ही २२

आज फिर सूरज की तलाश में भटक सा गया था वो 
अनभिज्ञ का अहंकार एक काले छिद्र सा तो है यूँ  तो
आकाशगंगाओं की रौशनी कम पड़ जाती है जिस अनंत घनत्व में
जाने कितने 'संदीप' लगे थे फिर भी उस स्याह में उजाला लाने में

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