बुधवार, 9 जनवरी 2013

पगडण्डी


पथ पे चलते सब है , मैं पगडण्डी पे चलूँ
जब उसने मुझे अलग बनाया , सबके जैसा क्यों रहूँ
तुम ये सोचते हों मैं पीछे रह गया
मैं सोचता हूँ मैं कुछ आगे हूँ
तुम हँसते मेरी नाकामयाबी पे
मैं रोता तुमारे छोटे सपनो पे  
कल जब पगडण्डी बड़ी सड़क बनेगी ,
पूरा सूबा चलेगा , तो तुम मुझे याद करोगे ,
किताब में लिखोगे पढोगे मेरा नाम
मैं नहीं रहूँगा , बड़े और पुरे हुए मेरे सपनों पे नाज करोगे

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