रविवार, 16 दिसंबर 2012

महुआ या मेथनोल

जहरीली शराब वाला केस में कोई सरकार को गरिया रहा है , कोई पुलिस को , कोई स्थानीय प्रशासन को , तो कोई उत्पाद विभाग , तो कोई स्प्रिट मुहैया करने वाले दवा दूकान वालो को | बहुत तो सिर्फ लगे है राजनीतिक रोटिया सेंकने में |

हर राज्य (अधिकारिक तौर पर शराब मुख्त राज्य जैसे गुजरात , नागालैंड , लक्षद्वीप के अलावा) का १०-३०% राजस्व शराब पर लगाये गए करो से आता है , जाहिर है अवैध शराब बेचने पर सरकार को समस्या
तो होगी ही| वर्ना जिस राज्य में पहले से हर वर्ग किलोमीटर में ११०० से अधिक लोग है वहां कुछ के जाने से क्या फर्क पढ़ने वाला है , कुछ पलायन कर चुके है , कुछ मौत से थोड़ी बेहतर जिंदगी जी रहे हैं, कुछ और मरे |

खैर इतिहास गवाह है शराब ने बहुत कुछ बर्बाद किया और करवाया है, कभी घरों को , कभी रिश्तों को और कभी जिंदगियो को |

ऐसा नहीं है कि मैं असवेंदनशील हूँ और मुझे अफ़सोस नहीं है इस घटना का , लेकिन एक चीज़ मुझे हमेशा सताती है जो समझ से परे है , कि शराब में ऐसा क्या है कि हम पीने की आदत बंद नहीं कर पाते हैं? खैर साहिल पर खड़े हो दरिया के तूफानों के अनुभव के बारे में बोलने का हक तो नही है |

दारु पीना हरेक का निजी फैसला है और जब कोई जान बुझ कर मरना चाहता है तो मरो , बाद में हम आकर आपको शहीद घोषित करंगे , जैसा हर मरने वाले के साथ करते हैं , फिर हम शराब की गुणवत्ता पे सवाल भी उठेंगे , घबराईये मत कभी भी हम मरने वालों पे सवाल नहीं उठाते आपपे भी नहीं उठायंगे , पीते रहिये , ठर्रा , देसी , महुआ , चिमकी पाउच , इथेनोल और और किस्मत रही तो एक अंतिम बार मेथेनोल भी , आखिर परिवार को अनाथ करना भी तो जरूरी है, नही तो जो जीवन बीमा कंपनी से पैसा कैसे निकलेगा , आखिर ऐसे ही थोड़े आरा एल आई सी का सबसे बड़ा शाखा है |

सोचियेगा और लगे तो राय भी लिखियेगा | हँसाना गुदगुदना जारी रहेगा , बीच बीच में कभी कभी बस यूँ ही ...... |

(ये पोस्ट चंद दिनों पहले आरा में हुई जहरीली शराब से हुई अनेक मौतों वाली दुर्घटना के ऊपर किसी और फोरम में लिखा गया है, थोडा अलग व्यंग का समन्वय है लेकिन किसी की भावना खासकर इस दुर्घटना में शिकार लोगो और उनके परिजनों की भावना को ठेस पहुँचाना मेरा मकसद नहीं है , फिर भी अगर कोई आहत हुआ है तो माफ़ी चाहूँगा , और एक निवेदन करूँगा की शराब छोड़ सके तो छोड़ दे, कोई आपके घर पर आपका आसरा देख रहा है| )

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