शुक्रवार, 14 दिसंबर 2012

धर्म: आज के परिपेक्ष में कितना अछूत


सबसे अलग दिखने की चाह है , बहुत ज्यादा ज्ञान होने का अज्ञान है या सरल शब्दों में बेवकूफी: समझ नहीं आता | धर्म के प्रति बढती अज्ञानता और अनिभिज्ञता, बेहद ही चिंता का विषय बनती जा रही है |

फेसबुक पर लोग कूल बनते हैं , खैर कूल होने के दो मतलब होते हैं , एक होता है ठंडा होना दूसरा होता है काहिलपन करना, अब इन दोनों का मतलब समझाने कि क्या जरुरत है | थोडा गंभीरता लाये तो मुझे बड़ी तकलीफ होती है , जब लोगो का धार्मिक रुझान देखता हूँ , कुछ तो बड़ी शराफत से सच लिख देते है , कुछ atheist,  कुछ नहीं लिखना पसंद करते हैं , इन तीनो को पचा लेते हैं, फिर कुछ आते हैं , moderate, believer , humanitarian, agonist , theist और पता नहीं क्या क्या , कुछ अपने जाती  लिख देते हैं, क्योंकि धर्म दंगा करते है और जाती पद उन्नति , तो जाहिर है कौन सा जरूरी है |

धर्म का आज के दिन में सबसे हास्यापद हो गया है , शायद आगे और भी होगा क्यों कि नयी पीढ़ी का इससे कोई सरोकार नहीं हो पा रहा है , लोगो के पास समय नहीं है , उपभोगतावाद बढ़ रहा है , मंहगाई दर बढ़ रही है , पैसे की जरुरत भी| एक दौड चालु हो गयी है ओलंपिक की तरह , गोल मैदान में जहाँ हम दौड रहे हैं , एक के पीछे दो, दो के पीछे ३|

“तीतर के दो आगे तीतर , तीतर के दो पीछे तीतर” वाली कहावत याद आती है| सब दौड रहे है क्यों कि कोई न कोई आगे है , उनसे आगे निकलने के होड में दौड चल रही है| अब गोल चीज़े भी कभी खत्म हुई है भला आज तक |

इसी दौड में माँ बाप दोनों लगे है , बच्चे का भविष्य बनाने के लिए , वर्तमान प्ले स्कूल और आया के भरोसे , दादा दादी नाना नानी का कोई स्थान नहीं , दौड चालु है पैसे की होड में ताकि लड़का टॉप स्कूल जा सके , जहाँ कंप्यूटर से पढाई हों , लैपटॉप ले के पढ़े  , वातानाकूलित कमरों में , एकांत में , न कोई दौडना , न मैदान में खेलना, न दोस्तों से लड़ना , न दोस्त बना पाना , न रिश्तेदार , न ही माँ बाप का समय | मिलता है तो टेली विसन और इंटरनेट और उनकी कृत्रिम या आभाषित दुनिया जहाँ जो दिखता है वो होता नहीं है | सब कुछ सही, परफेक्ट, न कोई रास्ता भटकता है, न नयी चीजे ढूंडता है, क्यों की गूगल पे सब सही होता है|

टेलीविसन ये सीखाता है दुनिया में सबसे बुरी चीज़ है धर्म , आतंकवाद जेहादियो ने किया , जेरुसुलम भी धर्म की देन है , अयोध्या भी | ४७ का विभाजन , ८४ के दंगे , ९२ के बम विष्फोट , और २००२ का गोधरा , बस यही देन है धर्म का | उसपे तडका लगता है राज नेताओ का पलटी  मार के पैसे ले के सुपोर्ट कर देने के कला का, क्योंकि सांप्रदायिक ताकतों से मुल्क को बचाना है, हम भी तो वोट करते है विकास के नाम पे नहीं धर्म के नाम पर , जाती के नाम पर |  

अपना कोई बोध नहीं , न कोई चिंतन , न आत्म चिंतन, बस एक होड़ भीड़ के साथ चलने की और उन्से अलग दिखने की | बहुतो से मिला हूँ जो एलिट बन गए हैं , वोट नहीं देते, बच्चे सिनेमा हाल नहीं जाते , दूकान नहीं जाते, खेलने जाते हैं इनडोर क्लब में , घुमने जाते हैं देश के बाहर , धर्म तो मिडल क्लास चीज है LS (Low Society) चीज है | जो सही में संख्या में ज्यादा है , लेकिन किस्मत में कम , उनको कौन पूछता है , बस धर्म के नाम पे पैसा देते है ताकि १० गुना पैसा वापस आये , जैसे भगवान न हुए इन्सुरेंस की पोलिसी|

सबने मान भी लिया है , एक समय था जब दिन में लोग प्रवचन सुनते थे महान आत्माओ के जो शहर शहर गांव गांव घूमते थे , दायरा और पहुँच कम थी इसलिए अच्छे लोग ज्यादा थे| फिर टेलीविसन आया, तब तक ठीक था फिर केबल आया , अपने साथ लाया  रात को उटपटांग चलचित्र, जिन्हें असामजिक टाइप के लोग देखने लगे, कुछ युवा उत्सुकता वस देखते उन्हें, फिर समय बदला लोगो ने समझा और ऐसे चलचित्र मुख्य धारा के हिस्सा बन गए, और ऐसी चीजे दिन में ही आने लगी , कुछ समाज के चिंतित और कुछ दोगले ठेकदारो ने इसे रात को ही दिखाने की वकालत की | खैर हुआ कुछ नहीं एक स्थान रिक्त हों गया , अब रात को क्या दिखया जाये , तो उन्ही समाज के बह्कृत लोगो ने एक मौका देखा क्यों न रात को प्रवचन चालु किया जाये , भगवान बेचो , वैसे भी खुद समझ नहीं आये तो दूसरों को बेचो शायद वो समझ पाए | धंधा चल पढ़ा ,  पैसे कमाने लगे लोग|

आपको तो पता होगा | इस धर्म निरपेक्ष देश में क्रिमिनल कानून तो एक है , लेकिन पर्सोनल कानून हर धर्म के लिए अलग अलग है|

बस फिर क्या था लोगो ने होड़ लग दी , राम और कृष्ण के साथ अल्लाह यीशू और गुरुनानक भी बाजार में आ गए , शायद इस आस में की किसी दिन कोई मुझे समझेगा| लेकिन जनाब ऐसे लोग बनाते कहाँ हों आप लोग आज कल, “अब बबुल का पेड़ लगाइएगा तो आम कैसे मिलेगा , झेलिये बबूल का कांटा और बिकिये बाजार में १०० में पीस के भाव|

अल्लाह थोड़े लकी थे मूर्ति पूजा बंद कराई थी , बस लोगो ने उनका उर्दू अरबी में लिखा उनका नाम और ७८६ बेचना चालु कर दिया| प्रोतोसेंत थे वो क्रोस खरीदने लगे ,फिर सब लोग क्रोस लेने लगे | धर्म कही पीछे छूट चुका था , जो था वो दूर दूर तक धर्म नहीं कहा जा सकता था |

फिर नया फैशन भैया हम तो धर्म को मानते ही नहीं है , असल में ये धर्म को जानते ही नहीं है , क्योंकि अगर जानते तो ये भी जानते कि किसी भी धर्म को जानने पड़ता है मानना नहीं , धर्म बनाता है जिंदगी को आसान बनाने , और जिंदगी जीने के छोटे छोटे सलीको से जो आपके माँ बाप और रिश्तेदार, समाज और शुभचिंतक आपको सिखाते हैं जो सलीके आपके व्यक्तित्व में इंसानियत जीवित रखते हैं | धर्म का मतलब सिर्फ पूर्व दिशा मे शीश झुका जल चढाते हुए नमन करना और पश्चिम में झुक कर सजदा करना नहीं है वो तो हिस्सा है छोटा सा एक बढ़े जीने के तरीके जो आज कल हम सीखा नहीं पा रहे|

एक ठो और फैशन हुआ है रिलेशनशिप रुझान ‘its complicated लिखने का , खैर उसकी बात कभी और|

(यह लेख मेरी व्यक्तिगत सोच है , और किसी की धार्मिक भावनाओ को ठेस पहुँचाना का मकसद नहीं था , फिर भी अगर अनजाने में  ऐसा हो गया हो तो माफ़ी चाहूँगा)

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