मैं रावण हूँ , लंकापति
रावण ! जगत पिता ब्रह्मा का प्रपौत्र रावण| शिव का आराधक राम की तरह | ज्ञानी भी
हूँ, शायद बाकि सब से कहीं ज्यादा , मुझे पता था मेरी मृत्यु कब और कैसे होगी ,
मैंने मदत भी की भगवान की, मेरी मृत्यु के लिए बने लीला मे, हर वो काम कर के जिनके
बिना मेरी मृत्यु न हो पाती| क्या मैंने गलती की , जगत के विध्वंशक और परिवर्तक भगवान शिव की आराधना करने के जिंदगी भर , या मृत्यु
पा कर जगत के पालनहार भगवान विष्णु के
प्रतीक विष्णु # 7 राम से |
इतना ज्ञानी होकर भी मुझे
बुराई का प्रतीक माना गया , आज भी मृत्युलोक के एक से बड़े नीच मुझे जला जाते हैं ,
कम ही समझ पाते है , मैं तो एक प्रतीक हूँ आपके अंदर छुपे बुराइयों का| ये अहसास दिलाने के लिए की आप कितने भी ज्ञानी हो ,
कितने भी बलशाली हो , कितने भी बड़े खानदान के हो , अगर अहम आपको स्पर्श करेगा तो मृत्यु
निश्चित है, और मारने के लिए किसी भगवान की जरुरत नहीं , एक इंसान काफी है बिना
किसी सेना के | अगर जलाना ही है तों अपने अंदर की बुराई को जलाओ , अहम को जलाओ, मन
में प्रतीक को जलाओ, एक मन बारूद दिया तो क्या सोचते हो, अच्छाई जयी होगी| खैर
इंसान मर जाते हैं , सोच और विचार जीवित रहते हैं , मेरी सोच कितनी मजबूत थी इसका
अंदाजा इसी बात से लगाया जा सकता है कि अब तो लाखो करोडो रावण है , विष्णु # 10 कल्कि को भेजा तो दुनिया
खत्म हो जायेगी , शंकराचार्यो कों भेजा था , आज तक लड़ रहे हैं, अब तक मतभेद हैं की
विष्णु # 9 कौन है| सारे रावण जी रहे है लाखो करोडो साथ मे, हर सर को धड मिला है, अलग
अलग , किसी को दूसरे के अस्तित्व पर कोई आपत्ति नहीं|
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