दशहरा,
विजयादशमी, नवरात्री: कई नाम है इस पर्व का | कोई कहानी कहता रावन की ,
कहानी महिषासुर की| रस नौ , माता के नौ रूप| उत्तर में रामलीला और रावन दहन
हो रहा है , पश्चिम मे नवरात्री के नृत्य हो रहे है तो पूर्व मे दुर्गा
माता के आराधना , दुर्गा माता के साथ माता सरस्वती , माता लक्ष्मी, गणेश, कार्तिकेय की भी
|
भारत विविधताओ में एकता का देश है , आखिर जब राम लड़ रहे थे
रावण से , तब कोई नृत्य कैसे कर सकता है हर्ष और उल्लास के साथ | विष्णु
वर्सन 8 (कृष्ण) डाउनलोड करने के बाद भक्ति मे पुराने आउटडेटेड सॉफ्टवेर
विष्णु वर्सन 7 (राम) का क्या जरुरत| जो करना है करने दो| खैर आज कल कुछ
लोग अपने आप को पाश्चात्य संस्कृति(बिहार के लिए गुजरात भी पश्चिम ही है )
से ग्रसित हो खुद को डांडिया डांसर समझ रहे हैं|
त्यौहार| इसको
मनाने का अधिकार सिर्फ पैसे होने वाले को ही होना चाहिए| नए वस्त्र सबके लिए,
चाहिए या न चाहिए , शायद आपकी अलमारी के लिए ही सही | बच्चे थे; खुश हो जाते
थे , बाकि जैसे हम भी नया वस्त्र लेंगे , मेले मे जायंगे | पैसे तो माता
पिता देंगे ही|
तभी मनमोहन सिंह नहीं हुआ करते थे , तो हमें यही
लगता था की पैसे पेड़ पर उगते हैं| तभी बता देते तों इतनी तकलीफ न होती |
शायद इन्होने बोला भी होगा , तभी प्रधानमंत्री नहीं थे , एकोनोमिक्स टाइम्स
के किसी पन्ने पे छापा भी होगा , किसी ने न पढ़ा न बताया| कुछ लोग की
किस्मत ऐसे ही होती है , कुछ भी कर ले , कुछ भी बन जाये , कोई भाव नहीं
देता |
पैसे के तकलीफ नही पता, मध्यम वर्ग का बजट खराब हो जाता
था , सबके लिए नए कपडे , स्त्रियों को घर का मालिक बनाया ही इसलिए जाता
होगा ताकि अगर कटौती करनी है तो अपने नए कपड़े न ले , मालिक त्याग के लिए ,
बलिदान के लिए , शोषित होने के लिए|
मालूम पड़ जाएँ तो कभी नए
कपड़े न लेते, जरुरत ही क्या है| क्या भगवान राम ने नए कपड़े पहने थे, रावण को मारने के लिए , या माता ने पहनी थी नयी साडी, राक्षसों का अंत करने
के लिए |
मध्यम वर्ग तो फिर भी ठीक है, ले दे के , कर्जो मे डूब
के त्यौहारो के सजा यातना झेल जाता है, बोलता है | शायद कुम्भ मे इतनी
इतनी भीड़ इसलिए होती है , क्योंकि उस वर्ष त्यौहार १२ के बजाये १३ महीनों
पर आता है , लोग खुश होते हैं दुआए देते हैं , चलो थोडा आराम मिला एक महीने
का|
गरीबों की हालत क्या कहने| आता ही है त्यौहार: यह अहसास
दिलाने की तुम हो या नहीं , फर्क नहीं पड़ता किसी को भी नहीं| मांग लो, नहीं मिलेगा , परबी के नाम के कुछ कपड़े पुराने मिल गए तों मना लो त्यौहार
खुश हो के| बच्चे हो तो भी समझो, फटा पुराना ही सही, मिला तो बदन ढांकने
कों , आखिर ये शायद आखिरी वर्ष हो तुमारा , इस ठण्ड टिक पाए तभी तो आखिरी
नहीं होगा न|
जो कुछ मिल गया खुश हो जाओ अपनी किस्मत
पर| गम न करो जिन्दा रहने दिया गया, खैर मनाओ | लेकिन बचपन ही तों है एक वो
भी छीन लें | मर मर के माँ बाप बच्चो के खुशी खरीदतें हैं, अपना खून बेच कर|
खैर सच्चाई ये है कि भगवान के यहाँ सब बराबर है , लेकिन जाने वालो कों
दूसरों को आना अच्छा नहीं लगता , एक्सक्लूसिव सर्विस की आदत पड़ गयी है हमें
, भगवान से भी चाहिए | इनका बस चले तो रावण के अंदर एक पारदर्शी आग
सुरक्षित कमरा बना के रावण दहन देखे , खास नागरिक जो हैं आम देश के|
खैर मुझ जैसे दीवानों के मत सुनिए, पर्व मनाइए , हो सके तो दबे वर्ग की भी मदत कीजिये|
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