गुरुवार, 27 सितंबर 2012

मस्जिद घर से दूर थी

मस्जिद घर से दूर थी और खुदा था पास,
और वो समझे काफिरो के जमात से हम आये थे|
आशाओ का दीप ना जला पाया क्योंकि वहां हवा थी तेज,
उनको लगा हमें अँधेरे की आदत सी पड़ गयी थी|
बहुत आशाओ से उन्होंने हमें देखा,
पर वो समझ ही न पाये कि उनकी निराशा अब हमारी थी|
रात भर उनको सोच, हमें नींद ही नही आई,
उन्होंने तो हमें दिनभर सिर्फ उंघते ही देखा था|

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