मंगलवार, 24 जुलाई 2012

लंदन २०१२

जा रहे हो तुम करोड़ों आशाओ के साथ||
लौट के आना सुवर्ण श्रृंगार से साथ |
सोचना तुम ये तो कर ही सकते हो||
ऊपर उठ सकते हो आसमान छु सकते हो| 
बोझ ना समझना ये अभिलाशाएं है तुम्हारी|
कुंदन तुम खुद हो तो पूर्ण होंगी स्वर्णिम आकांक्षाएँ तुम्हारी||

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