अपने
स्वभाव से कितनी विपरीत है
चले
इसपे दुश्मन और मित्र है
ये
सड़क कितनी विचित्र है
बनाने
में लगे सिर्फ ईंट पत्थर, खाएं
इसने हाड मांस किन्ही का
देखिये
इसपे पूरी जिंदगी सचित्र है
ये
सड़क कितनी विचित्र है
कभी
कभी लगे भरी कभी लगे कितनी रिक्त है
ये
सड़क कितनी विचित्र है
कभी
किसी से मिलन की अनुभूति कराये
कभी
किसी का विरह अभिव्यक्त कर जाये
पहिया
घुमें इसपे कभी, पड़े कभी नालो की ठोकरे
चलती
आई सदियों से यही रीत है
ये
सड़क कितनी विचित्र है
कभी
बनी सिर्फ कागजो में कभी कभी लगा भी कोलतार है
निर्माण
प्रक्रिया में विरोधाभाष कितना, कैसा ये व्यक्तित्व है
ये
सड़क कितनी विचित्र है
कभी
ये मुड़े दायें कभी ये जाये बायें
जाने
कैसा इसका चरित्र है
ये
सड़क कितनी विचित्र है
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