जिंदगी कुछ यूँ रही कि मौत बेहतर हो सके,
उस मौत के इस इंतज़ार में जीना ही भूल बैठे
मंगलवार, 24 जुलाई 2012
लंदन २०१२
जा रहे हो तुम करोड़ों आशाओ के साथ|| लौट के आना सुवर्ण श्रृंगार से साथ | सोचना तुम ये तो कर ही सकते हो|| ऊपर उठ सकते हो आसमान छु सकते हो| बोझ ना समझना ये अभिलाशाएं है तुम्हारी| कुंदन तुम खुद हो तो पूर्ण होंगी स्वर्णिम आकांक्षाएँ तुम्हारी||
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